Thursday, January 26, 2012
कारवां जो लुट गया
आंसुओं का सिलसिला जैसे सदियों तक चला
काल ने बनाया रेगिस्तान, रेत का नहीं ओर-छोर
सन्नाटे की तरह खाता मन को, कानो में गूंजे मौत का शोर
बहुत खाली था दामन , और सूना कर गया
कोई गिद्ध आया, दिल नोंच कर ले गया
लुटाने के लिए कुछ नहीं फिर भी लुटे से लगते हैं
सूरज से डर से सो जाएँ, रात के अँधेरे में जगते हैं
दहशत ने जकड़ा दिमाग खौफ खाता है मन
दिल के जो टुकड़े बचे हैं, रेत से बीन रहे हम
बंद कर दो तालो में, छुपा दो दीवारों के भीतर
कहीं ये भी खो न जाएँ, हर पल यही डर
आशंकाओं में पालें एक पूरी नसल
भरे खलिहान में बची है बस दो-चार फसल
कांटो की सेज पर, फूलों को फेंका
मासूमो को काल ने एक बार तो देखा होता
उसके भी हाथ थर्रा जाते, उन कलियों को तोड़ते
कई जीवन जिस छाँव में पलते, उसे धूप में घोलते
बिजलियाँ गिरती हैंजब, इमारतों के बुर्ज हैं टूटते
यह पहली बिजली देखि, नींव का पत्थर लूटते
शातिर खिलाडी निकला तू, एक चाल में दे दी मात
शरीर के अंग अंग पर, एक वार से किया आघात
आँखे दी रौशनी छीन ली, मुंह में रही न जुबां
हाथ-पैर को मारा लकवा, सबने दिए होश गवां
अब जो जिन्दा लाशें फिरती हैं, किसकी पीठ पर उनका बोझ?
मौसम गला घोंटे अंकुरों का, वे नवागत किसे दें दोष??
Wednesday, November 4, 2009
आशातीत मन की प्रतिक्रिया
यूँ सूरज का उगना , ढलना
चँद्रमा का लुकना , छिपना
दिनों का घटना , बढ़ना
- मौन , अक्रिय, उदासीन .
क्यूँ झेल नहीं पाती फिर भी –
कष्ट का आना , जाना
हँसी का खिलना , मुरझाना
विश्वास का खोना , पाना .
---- क्या यही है आशा का जलना बुझना ?
Monday, August 3, 2009
Love changes Life
What is actually true love?
Love which controls but frees your heart,
Love which is blind but expands your vision,
Love which makes one person your whole world yet gives new meaning to all horizons
Love that is so ready to sacrifice, so ready for submission,
………
प्रेम ग्रन्थ का बस एक पन्ना ह्रदय की सारी ग्रंथियां , गुन्थियाँ खोल देता है
प्रेम कोई दीपक नहीं, प्रत्युत एक स्वयम्भू सूर्य है, जो अंतर्मन को देदीप्यमान कर देता है.
यही अजस्र प्रकाश तो अनंत सत्य है, यही सत्य ईश्वर है...
Monday, February 16, 2009
बहुत दिन बाद आज घर लौटा ...
आँगन का अमुवा ताना मारता है ,
मुंडेर पर कौवा भी कुछ बोलता है
छज्जे पर गिलहरी अब भी दाना पूछे
चौखट का आल्या घड़ी-घड़ी खीझे
तुलसी का दीपक तेल मांगता है
कमरा खूँटी पर इंतज़ार टाँकता है
तिपाई का पैर कुछ चरमराये
हर एक कोना बीते दिन सुनाये
कहाँ चले गए थे तुम आंखों के नूर
कैसे रहे हमसे इतनी दिन दूर |
Thursday, February 12, 2009
टूटते दरख्तो के बीच
एक सफ़र किया टूटते दरख्तो के बीच,
कराहों से सजे मंज़र, पीले पत्ते,मुरझाए फूल
बौराई टहनियों से टपकते आँसू, नीचे दरकती ज़मीन,
अंदर उमड़ते तूफान, उपर से मौन पड़े हैं, गमगीन
दुख से चुप ना थे, अवाक खड़े थे मुह खोल,
ये क्या हुआ ? – प्रश्नचिन्ह लगा रहे नज़रों से
भयंकर दावानल था या कोई भीषण बवंडर
हरियाली खाक हो गयी, खोखले हुए सब अंदर
ओठ खुलते हैं तो सिर्फ़ आह निकलती है,
बंद करने पर सिसकी क्यों सुनाई देती है,
दिलों पर भस्म जमी है, क्या साधु हैं ये,
कोटरों में जीव नहीं है, हवा भी दम साधे है
हड्डियों की चटकं में उम्र का ज़ोर भी है,
वक़्त से पहले पौधों को सख़्त बनाने का शोर भी है
पहचान लुप्त हो गयी खुद की, एक दूसरे की,
खोखली निगाह डालते हैं, खोए को तलाशें भी
दिल जो बेजान हुए, मुह से आवाज़ लापता है,
सूखे फूलों से ढका गुज़रता एक काला रास्ता है,
खुद को जलाकर जो रोशन करते हैं अंधेरा, अजीब,
एक सफ़र किया ऐसे टूटते दरख्तो के बीच
Wednesday, February 11, 2009
मुमुक्षा
कण मात्र प्रज्ज्वलित होता तुमसे, जलता निशीथ-दीप समान
अंगारा होकर प्रदीप्त तुमसे, लेता अग्नीपुंज का स्थान
स्वयं को आहूत कर यज्ञ में, जीवन बनता यज्ञ महान
उसके उर में विनाश नहीं, प्रारंभ होता वहाँ निर्माण
वह क्षण भन्गुर चिंगारी, तुम हो अजस्र प्रकाशमान
चाहे भस्मसात हो जाए, जलना है उसे अविराम
बने राख, हवा चली आए, उड़े भस्म, पहुँचे श्री धाम
Tuesday, February 10, 2009
गिरा चुपके से मौन एक आँसू….
..आँसू यह कि पीछे अश्रु धार नहीं
विह्वल दूत है यह, दिल का गुबार नहीं
एक बूँद विस्मय है या दुख का सागर पूरा,
अकेलेपन का साथी है या कोई स्वप्न अधूरा
कोई पराजय है या किसी वस्तु का खोना,
या किसी ने छू दिया है मर्मस्पर्शी कोना
या कोई प्रसन्नता है जो दिल मे ना समाई,
आज अकारण ही क्यों आँखें भर आईं
इन प्रश्नों का उत्तर तो मन भी ना दे पाए,
जहाँ से उद्वेलित हो अश्रु आँखों तक आए