बहुत दिन बाद आज घर लौटा ...
आँगन का अमुवा ताना मारता है ,
मुंडेर पर कौवा भी कुछ बोलता है
छज्जे पर गिलहरी अब भी दाना पूछे
चौखट का आल्या घड़ी-घड़ी खीझे
तुलसी का दीपक तेल मांगता है
कमरा खूँटी पर इंतज़ार टाँकता है
तिपाई का पैर कुछ चरमराये
हर एक कोना बीते दिन सुनाये
कहाँ चले गए थे तुम आंखों के नूर
कैसे रहे हमसे इतनी दिन दूर |
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
वाह वाह वाह
अमुवा का ताना मारना और खूंटी पर टंगा इंतजार ... बहुत पसंद आए ये दो बिम्ब, बराबर रवानगी बनी रही है यानी आपके शब्दों में है कुछ बात
अति सुन्दर रचना!
---
चाँद, बादल और शाम
bahut khoob...
Great888888888 !!!
साधारण शब्दों में आपने बेहद सादे तरीके से बहुत प्रभावशाली बात कह दी है। ऐसे में बधाई तो बनती ही है।
-----------
SBAI TSALIIM
bahut khoob..
बहुत दिन बाद आज घर लौटा ...
आँगन का अमुवा ताना मारता है ,
मुंडेर पर कौवा भी कुछ बोलता
sundr drshy bimb .
बिम्बो की सघनता बहुत अच्छी लगी
Post a Comment