Tuesday, February 3, 2009

ख़ालीपन

बीते लम्हों की कसक दे जाती है ,
वो एक झलकपुराने पन्ने पलटाती है
समय के साथ-साथ ,
समय मे हम कहाँ खड़े हैं?
देखें एक दूजे को,
खुद मे क्या देखना चाहते हैं?
एक ख़ालीपन है दरमियाँ ,
हम मे क्या महसूस होता है?
कुछ अनमोल है बंद मुट्ठी में,
रोज़ पाता , रोज़ खोता है

5 comments:

Anonymous said...

Bahut khoob
waiting for next

Unknown said...

nice one yaar.....
meaningful mam!!!!!!!

अभिषेक मिश्र said...

कुछ अनमोल है बंद मुट्ठी में,
रोज़ पाता , रोज़ खोता है

Sundar abhivyakti, Swagat.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

bahut aacchi hai aapki rachnaa..........!!

Page copy protected against web site content infringement by Copyscape