बीते लम्हों की कसक दे जाती है ,
वो एक झलकपुराने पन्ने पलटाती है
समय के साथ-साथ ,
समय मे हम कहाँ खड़े हैं?
देखें एक दूजे को,
खुद मे क्या देखना चाहते हैं?
एक ख़ालीपन है दरमियाँ ,
हम मे क्या महसूस होता है?
कुछ अनमोल है बंद मुट्ठी में,
रोज़ पाता , रोज़ खोता है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
5 comments:
Bahut khoob
waiting for next
nice one yaar.....
meaningful mam!!!!!!!
कुछ अनमोल है बंद मुट्ठी में,
रोज़ पाता , रोज़ खोता है
Sundar abhivyakti, Swagat.
बहुत सुंदर…आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
bahut aacchi hai aapki rachnaa..........!!
Post a Comment