समेट रहे हैं बिखरे टुकड़ों को
कहीं कतरा छूट न जाए,
मूरत बनने से पहले ही
कहीं फिर टूट न जाए
नींद से न जगाना मुझे
ख्वाब पूरा नहीं हुआ,
एक पहर बाकी है
अभी सवेरा नहीं हुआ
भोर होने से पहले बस
एक कोशिश करनी है,
वो जिंदगी जो रूठी है
मुझे आज अपनी करनी है
इस भाग दौड़ में, जिसे हम जिंदगी कहते हैं , थोड़ा ठहर कर सोचें कि हम कहाँ जा रहे हैं? मैं जा रही हूँ मोक्ष की ओर , अध्यात्म के सहारे, आत्म अवलोकन के सहारे, इन विचारों के सहारे देखे कितने सहयात्री मिलते हैं???
4 comments:
Swagat hai Iti Ji,
Kabhi yahan bhi aaye....
http://jabhi.blogspot.com
kafi gambheerta hai aapki rachnao me.
---------------------------------------"VISHAL"
काफ़ी अच्छी रचना है, मनोभावों का प्रकटन भी सुन्दरता से किया गया है।
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चाँद, बादल और शाम
koshish jarur kamayaab hogi
नींद से न जगाना मुझे
ख्वाब पूरा नहीं हुआ,
एक पहर बाकी है
अभी सवेरा नहीं हुआ .......... bahut achchi lagi ye pankiyan
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